हमारे देश में आज भी को बेटियो कई रोक -टोक में बांधा जाता है। उनको बस यही सिखाया जाता हे की एक अकेली लड़की पुरे घर की रोटियां बना सकती है ,पुरे घर के कपड़े धो सकती है,घर की सारी जिम्मेदारी वो अकेले ही उठा सकती है। बच्चो को भी अकेले ही पाल सकती है…..लेकिन अकेली लड़की देहलीज़ नहीं पार कर सकती है, शहर से बाहर अकेले घूमने नहीं जा सकती,नहीं घूम सकती देश-विदेश अकेले।आखिर क्यों? क्योंकि घर के बाहर भटक जाने का ख़तरा है। बहका दिए जाने का और ख़तरा है,गलत राह पे जाने का खतरा है, बेइज़्ज़त करके मार दिए जाने का खतरा है। बेशक़ अपनी घर की इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करना हमारी ज़िम्मेदारी है। और अख़बार, टीवी और news चैनल्स के ज़रिए सुबह से शाम तक सुनाई देने वाली दिल दहला देनी वाली ख़बरों के लिहाज़ से भी यह सोचना ग़लत नहीं कि घर के बाहर ख़तरा है, लेकिन ख़तरे के डर से अपनी परियो के पर बांध देना भी तो गलत है। , क्यों न उसे पंख फड़फड़ा कर उड़ जाने दें सपनों के सफ़र पर, लेकिन हां, जब निकल रही हो आपकी परी अकेले सफ़र पर, तो उसे कुछ बाते उसके पल्लू में बांधना न भूलें…आइये जानते है कुछ खास बातें।
1. अपना सच घर पर छोड़कर जाये।
ये बात सच है की हमारे संस्कार हमें सच बोलना ही सिखाते हैं, लेकिन सफ़रके दौरान इस संस्कार को निभाना कई बार भारी भी पड़ सकता है क्योंकि अकेले सफ़र करते हुए लड़कियां सबसे ज़्यादा जिस कारण से ग़लत लोगों का शिकार बनती हैं, वो सच है। आपको यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है, पहले ग़लत इरादेवाले व्यक्ति लड़कियों से नाम पूछते हैं और धीरे-धीरे उनके house details , family details,office details,hotel का नाम, room नंबर आदि की जानकारी लेकर फिर उन्हें परेशान करते हैं। इसीलिए अगर कोई व्यक्तिगत जानकारी लेने की कोशिश करे भी, तो सब कुछ सच-सच बताना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है।आप उसे clear कह सकती है की मझे personal details share करने में interest नहीं है लेकिन पुरे confidence के साथ बोले घबरा कर नहीं। क्योंकि घबराहटों भरा सफ़र कभी मज़ेदार नहीं होता। यादगार सफ़र वो होता है जिसे पूरी आंख और मन की खिड़कियां खोलकर पूरी शिद्दत से किया और जिया जाता है। आख़िरकार हर सफ़र हमें ऐसे रास्तों से जोड़ता है, जहां जितना जोख़िूम है, उससे कहीं ज़्यादा सुंदरता और सुकून है।
2. अपना डर घर पर छोड़कर जाए।
तुलसीदास ने कहा था,‘निज हित, अनहित पशु पहचाना…’ तो फिर ऐसा क्या है, जो विवेक पर भारी पड़ जाता है और चांद का पता पूछने वाली लड़कियां अगले शहर का bus stop भी अकेले नहीं देख पातीं। इसका कारण है डर… ‘हां ये डर ही है, जो सपनों को सच करने से रोकता है। लेकिन ऐसे देखें तो ये डर कहां नहीं है? क्या घर की चारदीवारों के भीतर डर नहीं? क्या पड़ोस में डर नहीं, बाज़ार में डर नहीं, स्कूल और दफ़्तरों में डर नहीं? लेकिन डर की वजह से हम जीना तो नहीं छोड़ सकते। जैसा कि डर के बारे में सोचा और समझा जाता है Reality वैसी नहीं है। यह सिर्फ हमें डराता है। इसलिए अकेले सफ़र पर जाती अपनी बेटी को डर का नहीं विवेक का पाथेय दें।
3. अपने कयास घर पर छोड़कर, विश्वास साथ ले जाना
सफर पर जाते समय अपने विश्वास को ज़रूर साथ ले जाये अंग्रेजी के एक प्रसिद्ध लेखक ने एक बार कहा था कि ‘अगर आपकी कल्पना का focus सही नहीं है, तो आपकी आंखें कभी सच नहीं देख सकतीं।अकेले सफ़र करने वाली लड़कियों के लिए ये कथन किसी सूत्र से कम नहीं। इसलिए बेहतर है कि जब भी अकेले सफ़र पर निकलें तो उससे कहें कि वो दहशत भरे कयास घर पर ही छोड़ जाए. बचपने की जगह विवेकऔर धैर्य को आगे रखे। घर के लोगों से संपर्क में रहें। अपनी location share करती रहें। पैसे बचाने के लिए सुरक्षा से समझौता न करें और ऐसे किसी व्यक्ति से नज़दीकी संवाद न क़ायम करें, जिस पर ज़रा-सा भी शक़ हो।